लोक निर्माण विभाग का संक्षिप्त इतिहास

सन 1777 से 1848 तक ईस्ट इण्डिया कम्पनी एक मिलिट्रि बोर्ड के मध्यम से सभी प्रकार के निर्माण कार्य कराती थी। इस बोर्ड के पास तीन इंजीनियर ग्रुप थे। तत्कालीन गवर्नर जनरल ऑफ इण्डिया लार्ड डल्हौजी द्वारा सिविल कार्यों के निर्माण हेतु एक अलग एजेंसी की आवश्यकता महसूस की गयी। फलस्वरूप्न 1849-50 में पंजाब प्रान्त में पब्लिक वर्क्स डिपर्ट्मेन्ट खोला गया। 1854 में तत्कालीन नार्थ-वेस्ट प्राविन्स (वर्तमान उ.प्र.) में भी पी.डब्लू.डी. खोला गया। इस विभाग को भवन, मार्ग, सिंचाई, रेल्पथ, मिलिट्री सुरक्षा, जल आपूर्ति जैसे विविध कार्य सौपे गये। इसमें सिंचाई ब्रांच रखी गयी, जिस्का मुखिया डायरेक्टर ऑफ कैनाल कहा जाता था। पी.डब्लू.डी. का एक सेक्रेटरी भी बनाया गया परन्तु यह विभागीय मुख्य अभियन्ता एवं सेक्रेटरी दोनो ही पदों का कार्य देखता था। 1861-62 में एक मुख्यअ भियन्ता, तिन वृत तथा 20 डिवीजन थे। 1870-71 में सिंचायी कार्यों हेतु मुख्य अभियन्ता कम ज्वाइंट सेक्रेटरी का एक अलग पद सृजित किया गया। 1882 में लोकल सैल्फ गवर्नमेंट स्कीम लागू की गयी जिसके तहत स्थानीय एवं कम महत्व की सड़कें लोकल बोर्ड को सौंप दी गयी।

1888 में पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेंट स्थायी किया गया। शुरू में थाम्पसन इंजिनियरिंग कालेज रूड़की का पूर्ण संचालन इसी विभाग पी.डब्लू.डी. की देखरेख में आ गया। 1948 में यह विद्यालय रुढ़की यूनिवर्सिटी बना दिया गया। 1901 में नॉर्थ वेस्ट प्रविन्स का बदल कर किया गया। तभी से यह विभाग यू. पी.डब्लू.डी. कहलाया।

1908 में कार्यरत पद इस प्रकार थे। जुलाई 1972 में ग्रामीण अभियंत्रण विभाग का सृजन किया गया जिसमें ग्रामीण सड़कें, भवन निर्माण कार्य इसे सौंपा गया। 1973 में सेतु निगम तथा 1976 में निर्माण निगम अलग स्थापित किये गये। 1980 में कार्यों को बेहतर पर्यवेक्षण हेतु   का केन्द्रीयकरण किया गया। मेरठ, गढ़वाल, लखनऊ तथा वाराणसी को मुख्यालय बनाने हेतु प्रदेश को चार क्षेत्रों में बांटा गया। इन मुख्यालयों पर क्षेत्रीय मुख्य अभियंताओं की तैनाती की गयी। उस समय मेरठ क्षेत्र में मेरठ, आगरा, बुन्देलखण्ड कमिश्नरी रखी गयी तथा गढ़वाल में गढ़वाल व कुमाऊ। लखनऊ क्षेत्रों में लखनऊ, इलाहाबाद व झांसी तथा वाराणसी क्षेत्रों में वाराणसी, गोरखपुर व फैजाबाद कमिश्नरी रखी गयी। 1984 में बरेली, कानपुर व अलमोड़ा तथा पुनः 1987 में फैजाबाद, गोरखपुर, झांसी व आगरा बनाये गये। इस प्रकार 1992 तक विबाग में स्वीकृत पदों की संख्या इस प्रकार हो गयी थी।
प्रमुख्ह अभियंता-1 पद, मुख्य अभियंता स्तर 1-3 पद, मु.अ. स्तर – 2 के 15 पद। अधि. अभियंता – 72 पद, अधिशासी अभियंता 388 पद। यद्यपि सेतु निगम व निर्माण निगम के प्रबंध निदेशक के पद भी मु.अभि.स्तर-1 के पद हैं और इसी विभाग से प्रतिनियुक्ति के मध्यम से भरे जाते हैं, परन्तु पदों की गणना विभागीय संवर्ग में नहीं की जाती। उ.प्र. शासन के पत्रांक 1954 ई.जी./23-5-96/30 दिनांक 2.8.96 द्वारा उ.प्र. में तीन नये क्षेत्रों – मुरादाबाद,इलाहाबाद तथा आजमगढ़ सृजित किये जा चुके हैं। इस प्रकार अब यह विभाग पूरे प्रेदेश में 14 क्षेत्रों में बंटा है। इससे पहले उ.प्र. शासन के पत्रांक 11-इंज./23-सा.-नि.-अनु-5/109/ईजी-83 दिनांक 7.12.84 द्वारा मुख्य अभियान्ता स्तर-11 के निम्न पदों का सृजान कर चुका था। मु.अ. (परिवार) एवं मु.अ. तथा इसी पत्रा में मुख्य वास्तुविद का पद भी सृजित किया गया। इस प्रकार 1996 के अन्त तक विभागीय पदों की गणना निम्न प्रकार की जाती है।

प्रमुख अभियन्ता-1 पद, मु.अभि.स्तर- (निर्माण-निगम व सेतु-निगम के प्रबंध निदेशक के पद को छोड़कर मुख्य अभि.स्तर-11-19 पद, अधी अभियंता-सिविल 83 पद व 6 वि./या.अधि. (सि) 394, अधि.अभि. (वि/या.)-46, स. सिविल-1429 स.अ.वि./या.-186 पद।
इन्का क्षेत्रानुसार विवरण इस प्रकार है- मुख्य अभियंता से सम्बद्ध- मुख्य अभि. स्तर- मुख्य अ. (भवन), मु.अ. (वि/बै) मुख्य अभि (पर्वताचल) – मु.अ. स्तर-1 के कुल तीन पद अभियंता।
मुख्य वास्तुविद -1 पद वित्त नियंत्रक (प्रतिनियुक्ति -1 पद)
स्टाफ आफीसर -1 पद (अधीक्षण अभियंता स्तर)

अधीक्षण अभियंता के पदों का विवरण
मुख्य अभि. (परिवाद) के अधीन पद मुख्य परिवार अधिकारी, मुख्य अभि. (पर्वतांचल) के अधीन पद अभि. नियोजन (पर्वतीय), मुख्य अभि. (भवन) के (व्य्व. वर्ग-2), 10वां वृत भवन लखनऊ, 25वां लखनऊ, 39वां वृत लखनऊ मु.अ. (वि.बै.) के आ पद – अधीक्षण अभि. (नियोजन) (अधिष्ठापन), 55वां वाराण्सी, 64वां वृत, इलाहाबाद, 65वां वृत गोरखपुर

मुख्य अभियंता मुख्यालय – 11 के अधीन पद – व्यव. वर्ग. अधी.अभि. (सामान्य)
मुख्य अभियंता मुख्यालय-1 के अधीनस्थ पद – वृत सेतु, लखनऊ, 7 वां वृत नियोजन लखनऊ 37वां (परियोजना) लखनऊ।
उ.प्र.क्षेत्र बरेली – मुख्यालय सम्बद्ध, बरेली – शाहजह वृत, बदायुं – पीलीभीत वृत
मुरादाबाद क्षेत्र – मुख्यालय सम्बद्ध, रामपुर – बिज वृत, मुरादाबाद वृत
पूर्वी क्षेत्र वाराणसी – मुख्यालय भदोही वाराणसी वृत, मिर्जापुर – सोनभद्र वृत।
मुख्य अभियंता आगरा क्षेत्र – मुख्यालय सम्बद्ध, आगरा – फिरोजाबाद वृत, अलीगढ़ – मथुरा वृत, इटवा – मैनपुरी वृत
उ.द. क्षेत्र कानपुर – मुख्यालय सम्बद्ध, कानपुर वृत, इटवा वृत, फतेहगढ़ वृत।
गोरखपुर क्षेत्र – मुख्यालय सम्बद्ध, गोरखपुर-महाराजगंज वृत, बस्ती – सिद्धार्थनगर वृत, देवरिया – पडरौना वृत।
बुन्देलखण्ड झांसी क्षेत्र – मुख्यालय सम्बद्ध, झांसी – ललितपुर वृत, बांदा – हमीरपुर वृत, जालौन-उरई वृत।
आजमगढ़ क्षेत्र - मुख्यालय सम्बद्ध, आजमगढ़ माऊ वृत, जौनपुर वृत, बलिया वृत।
पशिचिमी क्षेत्र, मेरठ - मुख्यालय सम्बद्ध, मेरठ वृत, सहारनपुर- हरिद्वार वृत, बुलंदशहर गाजियाबाद वृत,   
फैजाबाद क्षेत्र- मुख्यालय सम्बद्ध, फैजाबाद वृत, बारंकी- बहराइच वृत, प्रतापगढ़- सुल्तानपुर वृत, गोण्डा वृत मध्य क्षेत्र – लखनऊ – रायबरेली वृत , सीतापुर – खीरी वृत, उन्नाव वृत, हरोई वृत पर्वतीय क्षेत्र कुमाऊ – मुख्यालय सम्बद्ध, 12वां वृत पिथौरागढ़, 22वां वृत नैनीताल, 53वां वृत हल्द्वानी, 43वां वृत अल्मोड़ा
पर्वतीय क्षेत्र पौड़ी – मुख्यालय सम्बद्ध, 13वां वृत उत्तरकाशी, 27वां वृत टिहरी, 24वां वृत देहरादून, 36वां वृत पौड़ी, 38वां वृत गोपेश्वर, 63वां वृत लैन्सडाऊन।
मुख्य अभि. (रा.मा.) के अधीन पद – अधीक्षण अभि (रा.मा.), अधि.अभि. (कोर्ट केस), 11वां वृत लखनऊ, 50वां वृत इलाबाद क्षेत्र –मुख्यालय सम्बद्ध, इलाहाबाद- फतेहपुर वृत, मुख्य अभियन्ता (वि./यॉ.), 17वां वृत लखनऊ, 29वां वृत हल्द्वानी, 30वां वृत लखनऊ, 47वां वृत मुरादाबाद, 44वां वृत वाराणसी, 49वां वृत देहरादून।

      उक्त के अतिरिक्त इस विभाग में तीन सीनियर आर्किटेक्ट, एक वरिष्ठ एवं वित्त लेखाधिकारी (प्रतिनियुक्ति से) तथा तीन विधि अधिकारी के पद भी हैं। साथ ही निदेशक अन्वेषणालय तथा निसेशक क्वालिटी प्रमोशन सेल भी (अधिरक्षण अभियंता) के समक्ष कार्यरत हैं।

      उ.प्र. शासन ने सा.नि.विभाग का नाम अपने आदेश सं. 1898/22-4-90/47 एन/90 दि. 10/4/90 द्वारा लोक निर्माण विभाग कर दिया है। इस दिशा में कार्यरत रहे मुख्य अभियंताओं का कार्यकाल इस प्रकार है उक्त तालिका से स्पष्ट है कि ब्रिटिश काल में इं. छोटन लाल भारतीय मूल के प्रथम मुख्य अबभयंता बने।

प्रमुख अभियंता 1962-63 में इं. जगदीश प्रसाद पहले मुख्य अभियंता बने जो 1964 में सेवा निवृत हुये। इन्हें पद्मश्री की उपाधि से अलंकृत किया गया था। परन्तु इनके सेवा निवृत्ति के पश्चात यह पद समाप्त हो गया। पुनः नवम्बर 1989 में इं. पी.एन. राय प्रमुख अभियंता बने। तब से अब तक बने प्रमुख अभियंताओं का कार्यलय इस प्रकार है-


 

 

नाम

कार्याकाल

इं. पी.एन. राय

11 / 79 - 3 / 80

इं. एस.सी. दिक्षित

3 / 80 / - 4 / 81

इं. पी.एन. मिश्र

3 / 80 – 4 / 81

इं. एम.एन. मिश्र

4 / 81 - 3 / 83

इं. शीतल शरण

3 / 83 – 8 / 84

इं. एम.एस.डी. सेठ

9 / 84 - 1 / 86

इं. जी.सी. गुप्ता

2 / 86 – 9 / 87

इं. एस.पी. गोयल

9 / 78 - 6 / 88

इं. धर्मवीर

7 / 88 – 8 / 90

इं. एन.सी.सक्सेना

9 / 90 - 8 / 91

इं. ए.एस. भटनागर

9 / 91 – 5 / 92

इं. डी.के. गुप्ता

6 / 92 - 2 / 93

इं. वी.के. श्रीवास्तव

3 / 93 – 6 / 94

इं. वाई.के. गुप्ता

7 / 94 - 2 / 95

इं. पी.के. सिंघल

3 / 95 – 12 / 95

इं. के.पी. वार्ष्णेय

1 / 96 -

इं. चन्द्रशेखर सनवाल

2 / 96 – 11 / 96

इं. रवीन्द्र कुमार

12 / 96 – 1 / 98

इं. दर्शन सिंह बतरा

2 / 98 – 8 / 98

इं. देवी चरण अग्रवाल

9 / 98 - 1 / 99

इं. रविन्द्रनाथ भटनागर

2 / 99 – 7 / 99

इं. बी.के. श्रोतीया

8 / 99 - 3 / 2000

इं. गोकर्ण सिंह

4 / 200 – 7 / 2000

इं. त्रिभुवन राम

8 / 2000 से जून 2011

इं. यदुनन्दन प्रसाद 7/2011 से 8/2011
इं. देवेन्द्र कुमार

9/2011 से 12/2011

इं चित्रा स्वरूप

12/2011 से अब तक


 

 

शासन स्तर – जहाँ 1935 तक सिंचाई सा.नि.वि. एक ही सचिवालय के आधीन कार्य कर्ता था, वहीं पर अब मात्रा लो.नि.वि. की देखरेख के लिये सचिवालय स्तार पर एक प्रमुख सचिव, दो सचिव, विशेष सचिव, दो संयुक्त सचिव, तीन उप सचिव तथा एक अनुसचिव नियुक्त है।

पदानुक्रम – इस विभाग में तकनीकी पदों का क्रम इस प्रकार है-

प्रमुख अभियंता – मुख्य अभियन्ता स्तर – 1, 11 अधीक्षण अभियंता – अधिशासी अभियंता, सहायक अभियंता – जूनियर इंजीनियर (सिविल, यांत्रिक, प्रवधिक)

1854 में स्थापित यह विभाग धीरे-धीरे प्रदेश का सबसे बड़ा विभाग बना परन्तु 1923 के बाद इसके टुकड़े होने शुरू हुए। आज यह विभाग अभियंताओं के लिये, स्वयं काम की बांट जोह रहे हैं। प्रदेश का सबसे महत्वपूर्ण यह विभाग आज शासन की तरफ से लगभ उपेक्षित है। इस्की पुरानी गरिमा समाप्त होती जा रही है। नई नियुक्तियाँ लगभग बंद हैं। आकार छोटा होता जा रहा है। आइये कुछ सोचें, अपने इस पतृक के विषय में। यह अपना घर है। इस घर को गरिमामय बनाना है।

नोट : नवम्बर 2000 में उत्तरांचल राज्य के गठन के फलस्वरूप पर्वतीय संवर्ग के पद/शाखायें उक्त राज्य को स्थानान्तरित हो गये हैं।

1919 में विभाग को मंत्रालय के अधीन किया था। 1921 में शासन ने सिंचाई व्यवस्था को एक आरक्षित विषय स्वीकार किया। फलस्वरूप 1924 में सिंचाई व पी.डब्ल्यू.डी. के उच्च्तर पदों पर अलग-अलग की जाने लगी। 1935 में सिंचाई सचिव का पद अलग किया गया। अन्ततोगत्वा 1938 में सिंचाई विभाग बना दिया गया। तब पी.डब्ल्यू.डी. मात्र भवन व मार्ग निर्माण कार्य हेतु रह गया। तभी से यह पी.डब्ल्यू.डी. (बी. एण्ड आर.) कहा जाने लगा। पहले इस विभाग का मुख्यालय इलाहाबाद था। 1923 में इसका मुख्यालय लखनऊ (वर्तमान पुराने भवन में) स्थापित किया गया। 1927 में मुख्य  अभियान्ता व सचिव के पद अलग-अलग बनाये गये। परन्तु 1930 तक मुख्य अभियंता ही दोनो कार्यों को देखते रहे तथा 1931 तक पी.डब्ल्यू.डी. के वर्तमान भवन लखनऊ में ही सचिवालय भी काम करता रहा। 1931 में यह सचिवालय अलग किया गया। 1931 में राजपुताना पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेंट अलग किया गया। जो बाद में सी. पी.डब्ल्यू.डी. में मिलाया गया। 1931 में ही रेलवे को अलग किया गया। 1925-26 में पब्लिक हेल्थ डिपार्टमेंट को पी.डब्ल्यू.डी. से अलग करके म्युनिसिपल विभाग को दे दिया गया। विभाग पदों की संख्या काम के अनुपात से बढ़ति रहीं यथा-1924 में सिंचाई व पी.डब्लू.डी. के उच्चतर पदों पर अलग अलग नियुक्ति की जाने लगी। 1934 में सिंचाई शाखा के अर्न्तगत हाइडिल विभाग नाम से एक अलग शाखा बनाई गई जो 1 अप्रैल 1959 को उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत परिषद के रूप् में परिवर्तित हुई। 1935 में सिंचाई सचिव के पद अलग किये गये। अन्ततोगत्वा 1938 में सिंचाई विभाग एक स्वतंत्र विभाग बना दिया गया। तब पी.डब्लू.डी मात्र भवन व मार्ग निर्माण कार्य हेतु रखा गया। तभी से यह पी.डब्लू.डी. (बी.एण्ड आर.) कहा जाने लगा। पहले इस विभाग का मुख्यालय इलाहाबाद था। 1923 में इसका मुख्यालय लखनऊ (वर्तमान पुराने भवन में) स्थापित किया गया। 1927 तक मुख्य अभियंता व सचिव के पद अलग-अलग बनाए गए। परन्तु 1930 तक मुख्य अभियंता ही दोनों कार्यो को देखते रहे तथा 1939 तक पी.डब्लू.डी. के वर्तमान भवन लखनऊ मे ंही सचिवालय भी काम करता रहा। 1939 में यह सचिवालय अलग किया गया। 1939 में राजपूताना पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेन्ट अलग किया गया। जो बाद में ब्च्ॅक् में मिलाया गया। 1939 में ही रेलवे को अलग किया गया। 1925-26 में स्थानीय सड़के लोकल बोडीज को दे दी गई परन्तु प्रान्तीय सड़के पी.डब्लू.डी. के पास ही रही। 1927 में पब्लिक हैल्थ डिपार्टमेन्ट को पी.डब्लू.डी. से अलग करके म्युनिसिपल विभाग को दे दिया गया।
यही म्युनिसिपल विभाग 1951 में स्वायत्त शासन विभाग (L.S.G.E.D.  ) तथा 1978 में जल निगम कहलाया। विभागीय पदों की संख्या काम के अनुपात से बढ़ती रही यथाः-
वर्ष            ,मु.अ.                   अधी.अभि.           डिवीजन
1938 1, 2, 7
1944-45          2 6 22
1947 2 6 26
1956 1 9 37
1971 1 56-4 292-22
वर्ष 1946 में पी.डब्लू.डी. रिसर्च इन्स्टीट्यूट (अन्वेषणालय) की स्थापना की गई। 1973 में राष्ट्रीय मार्ग अलग जोन बनाते हुए मु.अ. (रा.मा.) का पद सष्जित हुआ। 1999 में विश्व बैंक द्वारा अनेकों महत्वपूर्ण परियोजनाओं में धन लगाने हेतु मु.अ. (विश्व बैंक) का पद सृजित  किया गया। 8 अक्टूबर 1964 को उ.प्र. शासन द्वारा सामुदायिक विकास विभाग से लघु सिंचाई विभाग का गठन किया गया। 1 जुलाई 1972 को ग्रा.अभि.सेवा विभाग का सष्जन किया गया जिसमें ग्रामीण सड़के व भवन निर्माण काय्र इसे सौंपा गया। 1मार्च 1973 में सेतु निगम तथा 1 अप्रैल 1974 को निर्माण को निर्माण निगम स्थापित किये गए। 1980-81 में नलकूप निगम की स्थापना हुई। 1980 में कार्याे के बेहतर पर्यवेक्षण हेतु लोक निर्माण का विभाग विक्रेन्द्रीकरण किया गया। मेरठ, गढ़वाल, लखनऊ तथा वाराणसी को मुख्यालय बनाते हुए प्रदेश को चार क्षेत्रों में बाटा गया। इन को मुख्यालयों पर क्षेत्रीय मुख्य अभियंताओं की तैनाती की गई। उस समय मेरठ क्षेत्र में मेरठ, आगरा, रूहेलखण्ड कमिश्नरी रखी गई तथा गढ़वाल में गढ़वाल एवं कुमाऊ। लखनऊ क्षेत्र में लखनऊ,इलाहाबाद व झांसी तथा वाराणसी क्षेत्र में वाराणसी, गोरखपुर व फैजाबाद व फैजाबाद कमिश्नरी रखी गई।1984 में बरेली, कानपुर, व अल्मोड़ा तथा पुनः 1987 में फैजाबाद, गोरखपुर, झांसी व आगरा (क्षेत्र) बनाए गए। उ.प्र.शासन के पत्रांक 1954 ई.जी./23.5.96/30 ई.जी.दिनांक 2.8.96 द्वारा उ.प्र.में तीन नये क्षेत्र मुरादाबाद, इलाहाबाद तथा आजमगढ़ सष्जित किए गए। इस प्रकार विभाग पूरे प्रदेश में 14 क्षेत्रों में बंट गया। परन्तु 9 नवम्बर 2000 को उत्तरांचल क्षेत्र इससे अलग करके नया राज्य बना दिए जाने के कारण गढ़वाल एवं कुमाऊ क्षेत्र इससे अलग हो गए। वर्तमान मंे 12 क्षेत्र काम कर रहे है। इससे पहले उ.प्र. शासन के पत्रांक 11 एम-ईजी/23-सा.नि.अनु.-5/101 ईजी-83 दिनांक 7.12.84 द्वारा मुख्य अभियंता स्तर 11 के निम्न पदों का सष्जन कर चुका था। मु.अ. (परिवाद) एवं मु.अ. (वि.यॉ.),मुख्य वास्तुविद का पद भी सष्जित किया गया।यद्यपि सेतु निगम व निर्माण निगम के प्रबंध निदेशक के पद भी मु.अभि.स्तर -1 के पद हैं और इसी विभाग से प्रतिनियुक्ति के माध्यम से भरे जाते है, परन्तु इन दोंनों पदों की गणना विभागीय संवर्ग में नही की जाती। शासनादेश संख्या 693(1)23.5.04-18 म्ळ-2004 दिनांक 24.2.2004 द्वारा प्रमुख अभियंता के दो पद किए गए जिसमंे एक प्रमुख अभि. (परिकल्प एवं नियोजन) तथा दूसरा प्र.अभि.(विकास) कहा गया। प्र.अभियंता विकास ही विभागाध्यक्ष भी बनाया गया। प्रमुख अभियंता (ग्रामीण सड़क) का तीसरा पद 31 अगस्त 2006 को शासनादेश संख्या 2846 (1) 23.3.06 द्वारा सष्जित हुआ। श्री त्रिभुवन राम (परिकल्प एवं नियोजन) श्री विजय कुमार प्र.अभियंता (विकास)तथा श्री कष्ष्ण कुमार मित्तल प्र.अभि. (ग्रामीण सड़क) बनें।
इस प्रकार 2008 के अन्त तक विभागीय पदों की गणना निम्न प्रकार आती है-
प्रमुख अभियंता-3 पद, मु.अभि. स्तर-1, यानि 3 (निर्माण निगम व सेतु-निगम के प्रबंध निदेशक के पदों को छोड़कर) मुख्य अभि. स्तर द्वितीय 11 पद, अधीक्षण अभियंता (सिविल-83,वि.यॉ.-6), अधिशासी अभियंता (सिविल-394) (वि.यां-46),स.अभि.सिविल-1429,स.अभि. वि.यां-186 पद हैं।
प्रमुख अभियंता से सम्बद्ध पद-मुख्य अभियंता स्तर-1,मु.अभियंता भवन, मुख्य अभियंता विश्व बैंक, मुख्य अभियंता स्तर-7, मुख्य अभियंता रा.मा., मु.अभि. मुख्यालय 1,2, मुख्य अभियंता, परिवाद, मु. अभियंता (वि.यां.सभी क्षेत्रीय मु.अभियंता, मुख्य वास्तुविंद, वित्त नियंत्रक (प्रतिनियुक्ति),स्टाफ आफीसर-1 पद(अधीक्षण अभियंता स्तर) तीन सीनियर, आर्कीटेक्ट, एक वरिष्ठ एवं वित्त लेखाधिकारी, तीन विधि अधिकारी, निदेशक अन्वेषणालय, निदेशक क्वालिटी प्रमोशन सेल (अधीक्षण अभियंता स्तर)
उत्तर प्रदेश शासन ने अपने आदेश संख्या 1898/22.4.90 एन/90 दिनांक 10.4.90 द्वारा इसका नाम सार्वजनिक निर्माण विभाग से लोक निर्माण कर दिया है।